रविवार, 2 दिसंबर 2007

किसी के इतने पास न जाके दूर जाना खौफ़ बन

कदम पीछे देखने परसीधा रास्ता भी खाई नज़र

को इतना अपना न बनाकि उसे खोने का डर लगा

डर के बीच एक दिन ऐसा न आयेतु पल पल खुद को ही खोने

के इतने सपने न देखके काली रात भी रन्गीली
खुले तो बर्दाश्त न होजब सपना टूट टूट कर बिखरने लगेकिसी को इतना प्यार न करके बैठे बैठे आन्ख नम हो जायेउसे गर मिले एक दर्दइधर जिन्दगी के दो पल कम हो जायेकिसी के बारे मे इतना न सोचकि सोच का मतलब ही वो बन जायेभीड के बीच भीलगे तन्हाई से जकडे गयेकिसी को इतना याद न करकि जहा देखो वोही नज़र आयेराह देख देख कर कही ऐसा न होजिन्दगी पीछे छूट जाये

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